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माँ को अपने बेटे, साहूकार को अपने देनदार और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवत-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे सुदर्शन

नैतिक शिक्षा –  जो दूसरों के दर्द को समझता है उसे दुःख छू भी नहीं पता।

Graphic: Courtesy Amazon This can be a critically acclaimed satirical Hindi novel composed by Shrilal Shukla and published in 1968. This Hindi fiction book provides a scathing critique in the socio-political landscape of rural India. Established in the fictional city of Shivpalganj, the narrative unfolds from the eyes with the protagonist, Ranganath, a youthful male who returns to his ancestral village to recover from an disease.

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश

सिंहराज उसके लिए शिकार करता और भोजन ला कर देता।

एक दिन चुनमुन ने बच्चों को उड़ना सिखाने के लिए कहा।

कुछ दूर जा कर बैलों ने गोबर कर दिया। शिष्यों ने बैलगाड़ी रोकी और गोबर उठा कर गुरूजी के बगल में रख दिया। जब गुरूजी की नींद टूटी तो उन्हें अपने शिष्यों की मूर्खता पर बहुत गुस्सा आया। इस बार उन्होंने सोने से पहले कागज़ पर एक सूची बनायी जिसमे किस सामन hindi story को उठाने के लिए रुकना है और किस सामान के लिए नहीं रुकना है, यह लिखा था।

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश

कालिया ने अपने दोस्तों को भी परेशान किया हुआ था।

(एक) बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की ज़बान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है, और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बंबूकार्ट वालों की बोली का मरहम लगावें। जब बड़े-बड़े शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ चाबुक से धुनते हुए, इक्के वाले चंद्रधर शर्मा गुलेरी

(एक) रज्जब क़साई अपना रोज़गार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रक़म। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफ़ी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने मड़पुरा-नामक गाँव में ठहर जाने का निश्चय किया। वृंदावनलाल वर्मा

सुरीली और मृगनैनी की जान आज उसके परिवार ने बचा लिया था।

शांति ने ऊब कर काग़ज़ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और उठकर अनमनी-सी कमरे में घूमने लगी। उसका मन स्वस्थ नहीं था, लिखते-लिखते उसका ध्यान बँट जाता था। केवल चार पंक्तियाँ वह लिखना चाहती थी; पर वह जो कुछ लिखना चाहती थी, उससे लिखा न जाता था। भावावेश में कुछ-का-कुछ उपेन्द्रनाथ अश्क

एक दिन की बात है, दोनों खेल में लड़ते-झगड़ते दौड़ रहे थे।

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